Friday 17 February 2012

सुर संग्राम की उप विजेता ममता राउत का सफर

जन जन में लोकप्रिय गायिका ममता राउत आज जिस मुक़ाम पर हैं.उस मुकाम को हासिल करना आसान बात नहीं है, परन्तु ममता राउत के लिए मुश्किल भी नहीं था. महज ३ साल की छोटी सी उम्र में ही उन्होंने इन्साफ की डगर पे बच्चो दिखाओ चल के... गीत गाकर यह साबित कर दिया था कि अभी तो शुरुआत हुयी है, आगे -आगे देखो होता है क्या? और यह सिलसिला आज तक निरंतर जारी है क्योंकि ममता राउत ने गीत गायकी के साथ ही साथ पढाई में भी नंबर एक की पोजीशन बरक़रार रखा. संगीत के प्रति लगन और कड़ी मेहनत का ही नतीजा है कि आज वह पूरे भारत में रांची ( झारखण्ड ) का नाम रोशन कर रही हैं.
बतौर ममता राउत का कहना है कि - मेरे दादा जी श्री राम वृक्ष राउत गाँव में नौटंकी चलाते थे तथा खुद गाते भी थे. और मेरे पिताजी - बैजू बावरा एवं मोहम्मद रफी के प्रसशंक हैं और उनके गीतों को हमेशा गुगुनाते रहते हैं.इस वजह से मुझे संगीत की विद्या विरासत में तो मिल गयी हैं लेकिन इसे विश्व पटल पर पहुचना चाहती हूँ. मेरी बड़ी बहन ललिता राउत जो शादी के पहले स्टेज शो करती थी, वो मेरी प्रेरणा स्रोत हैं.
ममता राउत ने पढाई के साथ ही साथ स्टेज शो भी करती रही हैं और आज तक पूरे भारत में लगभग सौ से भी अधिक स्टेज शो कर चुकी हैं. उनकी सफलता का आलम यह है कि सन 2007 में उन्हें \"झारखण्ड आईडल \" का ख़िताब मिला तथा मेरी आवाज सुनो \'सा रे गा मा पा\' ( बिहार ) की विजेता भी रही हैं. साथ ही राची के सबसे बड़े संगीत प्रतियोगिता \'शंखनाद\' में प्रथम पुरस्कार भी प्राप्त किया है.
बात किया जाये फिल्मों में पार्श्व गायन की तो उन्होंने \'पियवा बड़ा सतावेला\' के हिट गीत \'झाड़ू पोछा करब नाही\' से अच्छी शुरुआत किया और अब तक \'मुकाबला\', \'दामाद चाही फ़ोकट में\' \'इलाका \' , \'गुलाम\', \'पागल प्रेमी\', \'राम लखन\', \'रंगदारी टैक्स\', \'दंगल\', \'मंगल फेरा\', \'प्यार भईल परदेसी से\', \'जोड़ी नं० वन\', \'रंग द प्यार के रंग में\', \'जिनगी तोहरे नाम\', ,काली\', \'कईसन पियवा के चरित्तर बा\', \'गजब सीटी मारे सईया पिछवारे\', \'डोली चढ़के दुल्हिन ससुराल चली\' एवं \'साली बड़ी सतावेली\' इत्यादि है.

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